ओम बिरला ध्वनि मत से 18वीं लोकसभा के अध्यक्ष चुन लिए गए। 10 साल बाद कांग्रेस को प्रतिपक्ष के नेता की कुर्सी मिल गई। राहुल गांधी प्रतिपक्ष के नेता बन गए। स्पीकर के चुनाव में वोटिंग की नौबत ही नहीं आई। विपक्ष ने ओम बिरला के खिलाफ के. सुरेश को मैदान में उतारा था लेकिन ऐन वक्त पर क़दम पीछे खींच लिए, वोटों की गिनती की मांग नहीं की। इसलिए ओम बिरला को ध्वनि मत से चुन लिया गया।
ओम बिरला आजादी के बाद छठे ऐसे अध्यक्ष हैं जो लगातार दूसरी बार इस कुर्सी पर बैठे हैं। बड़ी बात ये है कि अध्यक्ष के चुनाव के दौरान पूरा NDA न सिर्फ एक एकजुट रहा बल्कि सरकार के उम्मीदवार को जगन मोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस और अकाली दल जैसी पार्टिय़ों से भी समर्थन मिला।
इस दौरान विपक्षी गठबंधन में साफ तौर पर फूट पड़ती नज़र आई। तृणमूल कांग्रेस ने दावा किया कि वो वोटों की गिनती चाहती थी लेकिन प्रोटेम स्पीकर ने उसकी मांग को अनसुना कर दिया। कांग्रेस ने वोटिंग न करवाने का फैसला तृणमूल कांग्रेस से बात किए बगैर लिया। कांग्रेस के नेताओं ने कह दिया कि हर पार्टी की अपनी अपनी राय है।
कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार उतार कर जो संदेश देना था, दे दिया लेकिन कांग्रेस तो सर्वसम्मति से अध्यक्ष के चुनाव की परंपरा को कायम रखना चाहती थी, इसलिए वोटिंग से पीछे हटी। विपक्षी गठबंधन में शामिल JMM की महुआ मांझी ने कहा कि बहुमत तो सरकार के पास है, हमारे पास संख्या नहीं थी, तो फिर हारने के लिए वोटिंग की मांग क्यों करते? विपक्ष की तरफ से इस तरह के तमाम अलग-अलग बयान आए।