प्रतिदिन मंदिर जाने से क्या होता है ?(आचार्य राजीव शुक्ला)

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प्रतिदिन मंदिर जाने से क्या होता है ?
(आचार्य राजीव शुक्ला)

मंदिर जाने के वैज्ञानिक कारण: कई लोग किसी व्रत या त्योहार पर मंदिर जाते हैं, कई लोग माह में एक बार मंदिर चले जाते हैं, बहुत से लोग साप्ताह में एक बार तो मंदिर जाते ही है परंतु बहुत कम लोग ही हैं जो प्रतिदिन मंदिर जा पाते हैं। ऐसे भी कई लोग हैं जो सालों से मंदिर नहीं गए हैं।

  1. सकारात्मक विचार: प्रतिदिन मंदिर जाने से हमारे मन और मस्तिष्‍क में सकारात्मक विचार और भाव का विकास होगा। जीवन में नकारात्मकता समाप्त होगी तो फिर भविष्य भी सकारात्मक ही होगा।
  2. बढ़ता है आत्मबल : मंदिर जाकर मन में विश्वास और आत्मबल का संचार होता है जिसके कारण मन में किसी भी प्रकार का दुख या शोक नहीं रहता है। व्यक्ति सभी परिस्थिति में समभाव से रहता है। सम भाव अर्थात न तो भावना में बहता है और न ही कठोर होता है। हर परिस्‍थिति उसके लिए सामान्य होती है।
  3. रोग नहीं होगा: मंदिर में जाकर आप मंदिर के नियमों का पालन करते हैं। जैसे आचमन, परिक्रमा, ध्यान, पूजा, आरती, व्रत, उपवास और पाठ आदि के साथ ही सोच-समझकर आहार-विहार करते हैं तो आपको किसी भी प्रकार का रोग या बीमारी नहीं होगी।
  4. तनाव या चिंता से मुक्ति: बहुत से लोगों को अनावश्यक भय और चिंता सताती रहती है जिसके कारण वे तनाव में रहने लगते हैं। तनाव में रहने की आदत भी हो जाती है जिसके चलते व्यक्ति कई तरह के रोग से भी घिर सकता है, लेकिन मंदिर जाने वाले के दिल और दिमाग में ये सब नहीं रहता है।
  5. गृहकलह: प्रतिदिन मंदिर जाने वाले में मन और मस्तिष्क में कलह या क्रोध नहीं होता है। घर के दूसरे सदस्य यदि उससे झगड़ा करते हैं या घर में गृहकल हो रही है तो वह उसे समझदारी से हेंडल कर माहौल को खुशनुमा बना देता है।
  6. पैदल भ्रमण: प्रात:काल पैदल ही मंदिर जाने से विहार भी होता है और हमें प्राणवायु भी अच्छे से प्राप्त होती है। प्रतिदिन सूर्य की धूप के स्पर्श से सेहत में सुधार होता है। इसी के साथ मंदिर भूमि को सकारात्मक उर्जा का क्षेत्र माना जाता है। यह ऊर्जा भक्तों में पैर के जरिए ही प्रवेश कर सकती है। इसलिए हम मंदिर के अंदर नंगे पांव जाते हैं।
  7. मन को मिलती शांति: मंदिर में कपूर और अगरबत्ती की सुगंध और कई तरह के सुगंधित फूल अर्पित किए जाते हैं जिनकी सुगंध से मन प्रफुल्लित होकर अवसाद से मुक्ति हो जाता है। फूलों के विभिन्न रंग से अंतरमन को शांति मिलती है। यूं कि मंदिर का वातावरण मन को शांति कर देता है। सुगंध से एक ओर जहां मन और मस्तिष्क से नकारात्मक विचार हटा जाते हैं वहीं हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। यह हमें जैविक संक्रमण से भी बचाती है। मंदिर के सुगंधित रहने से बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं और किसी भी प्रकार का वायरल इंफेक्शन नहीं होता है क्योंकि मंदिर में कर्पूर और धुआं होता रहता है।
  8. घंटी की ध्वनि और आरती: मंदिर में घंटी की टंकार करीब 7 सेकंड तक गूंजती है जो मन मस्तिष्क से विषाद हटाकर शांति प्रदान करती है। ऐसा भी कहते हैं कि छोटी घंटी से हमारा पित्त दोष सन्तुलित होता है। साथ ही ध्वनि से भी बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। जब हम मंदिर में आरती या कीर्तन के दौरान ताली बजाते हैं तो यह एक्यूप्रेशर का काम करती है। इससे हमारे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होता है और शरीर की मांस पेशियां भी मजबूत होती है। आरती के बाद नमस्कार और दंडवत प्रणाम करने से हमारे मन में विनम्रता और श्रद्धा का भाव जागृत होता है। अहंकार और घमंड का नाशा होता है।
  9. जप और जयघोष: आरती या चालीसा को जपने पढ़ने से हमारा वाणी दोष भी दूर होता है। ओम् के उच्चारण से हमारा चित एकाग्र होता है। आरती के बाद देव देवताओं, भारत माता आदि के जयघोष से आत्म विश्‍वास के साथ ही देशभक्ति जागृत होती है। इसी के साथ हर मंदिर में गो रक्षा और गौ हत्या बंद होने करने का संकल्प भी लिया जाता है। आरती के बाद शंख बजाया जाता जो श्रद्धालुओं के लिए बहुत सुखदायी और स्वास्थ्य वर्धक है। शंख बजाने वाले के फेंफड़े मजबूत होते हैं।
  10. ज्योति: आरती लेने से हमारी हथेली की कोशिकाओं को दिव्य उष्मा मिलती है और हमारे भीतर पल रहे सभी विषाणु और जीवाणु समाप्त हो जाते हैं। आखों पर हथेलियां रखने से गर्माहट आंखों के पीछे की सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं को खोल देती है और उन में ज्यादा रक्त प्रवाहित होने लगता है जिससे हमारी आंखों कि ज्योति बढ़ती है।
  11. चरणामृत: दर्शन, पूजा और आरती के बाद हमें तुलसी मिला चरणामृत, पंचामृत और प्रसाद मिलता है। यह चरणामृत और पंचामृत हमारी सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। आयुर्वेद के मुताबिक यह चरणामृत हमारे शरीर के तीनों दोषों को संतुलित रखता है। चरणामृत के साथ दी गई तुलसी हम बिना चबाए निगल लेते हैं जिससे हमारे सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
  12. परिक्रमा: मंदिर में भगवान की परिक्रमा से जहां सेहत के लाभ मिलते हैं वहीं यह धरती के गुरुत्वकार्षण की शक्ति से जुड़कर हमारे शरीर का तनाव निकल जाता है। इसी के साथ ही में गुंबद और उसके कलश से प्रवाहित हो रही ऊर्जा हमारे शरीर को प्रभावित कर सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है।
  13. मनोकामना का दोहराना: मंदिर में जाकर जब हम अपनी मनोकामना को बार बार दोहराते हैं तो हमें मंदिर की सकारात्मक ऊर्जा का साथ मिलता है और इससे प्रकृति सक्रिय होकर हमारी मनोकामना पूर्ण करने लग जाती है।
  14. वृक्ष: हर मंदिर में पीपल, बरगद, नीम, केला और तुलसी आदि के वृक्ष रहते हैं। इन वर्षों में हम जल अर्पण करते हैं या उन्हें हम नमस्कार करते हैं। इन वृक्षों में भरपूर ऑक्सिजन के साथ ही दिव्यता होती है, जो हमारे मन और मस्तिष्‍क को स्वस्थ करते हैं। इससे हमारे मन में शांति आती है।
  15. दान: मंदिर में दिए गए दान के अनेक लाभ होते हैं। दान से हममें कृपणता नहीं रहती है और हम चीजों के प्रति आसक्ति नहीं पालते हैं। इसी के साथ ही हमारे सामाजिक दायित्वों का भी निर्वाह होत।

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