विपक्ष के स्पेस की राजनीति के लिए यह छोटी बात नहीं
(शाश्वत तिवारी)
मुंबई में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A की दो दिवसीय बैठक शुक्रवार को खत्म हुई। इस बैठक में विपक्ष के नेताओं ने एकजुटता का संदेश दिया है। हालांकि दलों के बीच हितों का टकराव देखने को मिला। बैठक में लोकसभा चुनावों की ही बात की गई विधानसभा चुनावों की नहीं।
विपक्षी दलों के गठबंधन नेताओं की हुई इस बैठक से निकले नतीजों पर गौर करें तो साफ दिखता है कि लोकसभा चुनाव समय से पहले होने की अटकलों को गठबंधन नेतृत्व ने गंभीरता से लिया है। जो तीन प्रस्ताव इस बैठक में स्वीकार किए गए, उनमें भी इसकी छाप नजर आती है। पहले प्रस्ताव में ही यह साफ कर दिया गया है कि अगला लोकसभा चुनाव जहां तक संभव होगा, साथ लड़ेंगे। यह घोषणा एक तरह से इस आशंका या सवाल को समाप्त कर देती है कि पता नहीं ये दल एक साथ आ पाएंगे या नहीं। कहा जा सकता है कि वे साथ आ चुके हैं। हालांकि इन दलों के बीच हितों का जो सहज टकराव था, वह दूर नहीं हुआ है। इसीलिए सिर्फ लोकसभा चुनावों की बात की गई। इसमें विधानसभा चुनावों को शामिल नहीं किया गया है।
यही नहीं, ‘जहां तक संभव होगा’ का प्रयोग बताता है कि सही अर्थों में सहमति बनाने के लिए अभी काफी मशक्कत करने की जरूरत पड़ेगी और ऐसी भी सीटें होंगी ही, जहां तमाम मशक्कतों के बावजूद सहमति नहीं बन पाएगी। ऐसे ही दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि I.N.D.I.A के सदस्य जल्द से जल्द सार्वजनिक रैली आयोजित करना शुरू कर देंगे। तीसरे प्रस्ताव में कम्युनिकेशन और मीडिया स्ट्रैटेजी का जिक्र करते हुए स्पष्ट किया गया कि यह ‘जुड़ेगा भारत, जीतेगा इंडिया’ पर आधारित होगा।
जाहिर है, ये तीनों प्रस्ताव जल्द से जल्द चुनाव प्रचार के मोड में आने का ही ऐलान हैं। 13 सदस्यों की जो को-ऑर्डिनेशन कमिटी घोषित की गई है, वह भी काफी महत्वपूर्ण है। इसमें सभी प्रमुख दलों को जगह दी गई है और यह इस गठबंधन की सर्वोच्च निर्णायक इकाई के रूप में काम करेगी। इस घोषणा के जरिए यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश हुई है कि सीटों के बंटवारे को लेकर जो भी मुद्दे उठने वाले हैं वे उठें तो जरूर, लेकिन सार्वजनिक तौर पर अनिश्चितता या असमंजस का कारण न बनें। इसकी संभावना कम इसलिए हो गई है क्योंकि को-ऑर्डिनेशन कमिटी के रूप में इन मुद्दों को निपटाने का एक मैकेनिज्म अस्तित्व में ला दिया गया है।
हालांकि अलग-अलग विचारधारा, नीति, अजेंडा और हितों वाले दलों का साथ चलना कितना मुश्किल है, यह इससे भी पता चलता है कि पहले से घोषणा हो जाने के बावजूद संगठन का लोगो जारी नहीं किया जा सका। संयोजक को लेकर भी किसी नाम की घोषणा नहीं हो सकी। वैसे मानकर चलना चाहिए कि आगे ऐसी और भी असहमतियां सामने आएंगी। हो सकता है मतभेद मनमुटाव का भी रूप लेते दिखें। लेकिन ये दल मुंबई में की गई घोषणाओं पर कायम रहें तो इतना जरूर है कि सत्तारूढ़ पक्ष के लिए साझा चुनौती ये बन चुके हैं। भारतीय लोकतंत्र के मौजूदा मोड़ पर विपक्ष के स्पेस की राजनीति के लिए यह छोटी बात नहीं।