श्रीलंका अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने की कगार पर है। इस वजह से सरकार विदेशों से जरूरी वस्तुएं नहीं खरीद पा रही है। वहीँ भारत लगातार आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका की मदद कर रहा है। भारत द्वारा कोलंबो को दी जा रही मानवीय सहायता हर गुजरते महीने के साथ बढ़ती जा रही है। जुलाई में श्रीलंकाई मुद्दे पर सर्वदलीय नेताओं की बैठक आयोजित करने से लेकर जनवरी के बाद से 04 बिलियन डॉलर से अधिक की सहायता प्रदान करने तक भारत श्रीलंकाई मामले पर बहुत सक्रिय रहा है।
श्रीलंका में भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट कर कहा है कि सोमवार को भारत ने श्रीलंका को 21,000 टन उर्वरक प्रदान किया, जिसका उद्देश्य खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और श्रीलंकाई किसानों का समर्थन करना था।
गौरतलब है कि आर्थिक संकट से घिरे श्रीलंका को भारत ने पड़ोसी धर्म निभाते हुए जुलाई में भी 44000 टन यूरिया दिया था। गौरतलब है कि भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के अनुसार, भारतीय पक्ष की ओर से इस तरह की कार्रवाइयां जारी रहेगी और भारत मदद देता रहेगा।
श्रीलंका में खाद्य सुरक्षा को लेकर लोगों को वास्तव में कितनी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा होगा इस बात का अंदाज़ा हाल ही में डब्ल्यूएफ़पी और एफ़एओ के मूल्यांकन के आधार पर लगाया जा सकता है। डब्ल्यूएफ़पी और एफ़एओ ने संयुक्त रूप से फ़सल एवं खाद्य सुरक्षा मूल्यांकन किया है और उसकी रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका में लगभग 63 लाख लोग खाद्य असुरक्षा का शिकार हैं, मतलब यह कि वे नियमित रूप से पौष्टिक आहार नहीं ले पा रहे हैं। भोजन की बढ़ती क़ीमतों के कारण, लोगों की दैनिक भोजन की ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं, इसलिये लगभग 67 लाख लोग पूर्ण आहार का सेवन नहीं कर रहे हैं।
अनुमान है कि लगभग 01 करोड़ 35 लाख लोग भोजन की कमी से मुक़ाबला करने के लिये नियमित रूप से कम पसन्द का या कम पौष्टिक भोजन खाना और सीमित आहार लेने जैसी रणनीतियाँ अपनाने के लिये मजबूर हैं। इनके अलावा आजीविका आधारित रणनीतियाँ भी अपनाई जा रही हैं, जैसे कि आय के सीमित अवसर होने के कारण अपनी बचत ख़र्च करने पर मजबूर होना, ऋण लेना, या अन्य वित्तीय सहायता मांगना आदि। इन सब परिस्थितियों से जूझ रहे श्रीलंका के लिए भारत हर संभव मदद पहुंचाने की कोशिश कर रहा है जिसका फायदा वहां की जनता को हो रहा है।