1.विधानसभा चुनाव के लिए अखिलेश की सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला तय
2.जातिगत संतुलन के लिए गैर यादव पिछड़ी जातियों के नेताओं पर भी लगाया जाएगा दांव
3.भाजपा के निशाने वाले राजनीतिक परिवारों को भी टिकट देने से नहीं किया जाएगा गुरेज
विधानसभा चुनाव के लिए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की सोशल इंजीनियरिंग करीब-करीब तय है। पार्टी के परंपरागत वोट बैंक ‘माय’ (मुस्लिम और यादव) में अन्य जातियों का वोट जोड़ सकने वाले दावेदारों को तरजीह दी जाएगी। इसके अलावा प्रत्येक मंडल में गैर यादव पिछड़ी जातियों के नेताओं पर भी उस अनुपात में दांव लगाया जाएगा, जिससे जातिगत समीकरण सधे रहें, साथ ही उस जाति विशेष के लिए सपा का संदेश भी चला जाए।
समाजवादी पार्टी ने सोशल इंजीनियरिंग के इस फार्मूले के तहत तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं। इसमें अलग-अलग जातियों के कुछ खास विधान परिषद सदस्यों की मदद भी ली जा रही है। सपा सूत्रों का कहना है कि पिछले दिनों हुए विधान परिषद के चुनाव में पार्टी को इस सोशल इंजीनियरिंग का सकारात्मक नतीजा भी मिल चुका है। वाराणसी से स्नातक चुनाव में कायस्थ जाति के युवा आशुतोष सिन्हा सपा के टिकट पर इसी प्रयोग से परिषद में पहुंचे। सपा के नेता भी यह स्वीकार करते हैं कि कायस्थ समाज परंपरागत रूप से भाजपा के ज्यादा नजदीक है।
विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग के इसी तरह के प्रयोगों को व्यापक तौर पर अमल में लाने की रणनीति बनाई गई है। इसकी गंभीरता का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि अगर भाजपा का भी कोई नेता इस फार्मूले में फिट बैठता है और वह सपा से लड़ने का इच्छुक है तो पार्टी उसे टिकट देने से परहेज नहीं करेगी। पार्टी का मानना है कि ‘माय’ फैक्टर में अपनी जाति का वोट जोड़ सकने वाले नेताओं से ही उसके लिए बहुमत का रास्ता खुलेगा।
सूत्रों का कहना है कि सपा उन राजनीतिक परिवारों के सदस्यों को टिकट देने से भी गुरेज नहीं करेगी, जो भाजपा और उसकी सरकार के निशाने पर हैं या रहे हैं। बशर्ते, वे पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग पर खरे उतरते हों। यानी, जिताऊ हों। साथ ही उन्हें टिकट देने से उस जाति व समुदाय विशेष में सपा के प्रति अच्छा संदेश भी जाता हो। इस कैटेगरी में मुस्लिम चेहरे भी शामिल होंगे। इसमें सपा इसकी भी परवाह नहीं करेगी कि उसके इन निर्णयों को भाजपा अपने पक्ष में भुनाने (ध्रुवीकरण) का प्रयास करेगी।